Sunday, August 30, 2009

एक पल ....

एक पल को लगा
घर जैसे छूट गया
जहाँ मैं बारिश की बूँद सी
थिरकती थी
पूरे आँगन में
बिखरती थी
बादलो की थी छाँव
बरसने को थी धरती
और पूरा आसमान
भिगोने को हर एक सामान
अब सब जैसे कुछ
भूल गया
घर छूट गया ....
अब घटा बन
उमड़ती घुमड़ती हूँ
बरसने को तरसती हूँ
मन जैसे कुछ टूट गया
घर छूट गया !