Wednesday, November 18, 2009

सवालों के हल

छूना चाहती हूँ आकाश
पर धरती से नही
टूटना चाहती
नापना चाहती हूँ ऊंचाई
पर आधार नहीं
खोना चाहती
उड़ना चाहती हूँ
पर बिखरना नही चाहती
होना चाहती हूँ मुक्त
पर बंधन नही तोडना चाहती
होना चाहती हूँ व्यक्त
पर परिधि नहीं लांघना चाहती
.......
देखती हूँ मेरा न चाहना
मेरे चाहने से अधिक प्रबल है
और फिर
मेरा न चाहना भी तो
मेरा चाहना ही है
इसलिए शायद
मेरे सवालों का
मेरे पास ही हल है

Sunday, August 30, 2009

एक पल ....

एक पल को लगा
घर जैसे छूट गया
जहाँ मैं बारिश की बूँद सी
थिरकती थी
पूरे आँगन में
बिखरती थी
बादलो की थी छाँव
बरसने को थी धरती
और पूरा आसमान
भिगोने को हर एक सामान
अब सब जैसे कुछ
भूल गया
घर छूट गया ....
अब घटा बन
उमड़ती घुमड़ती हूँ
बरसने को तरसती हूँ
मन जैसे कुछ टूट गया
घर छूट गया !

Tuesday, April 21, 2009

कुछ बातें और एक कविता

बहुत दिनों बाद आपके समक्ष हूँ । कारण साधारण ही था (लैपटॉप की तकनिकी खराबी) पर इसने मेरी अभिव्यक्ति को बाधित ज़रूर किया । आप सब याद आते रहे क्योंकि मन तो आप सब से जुड़ ही गया है भले तकनिकी तार टूटा रहा हो ....इधर एक कविता इसी उहा पोह में जन्मी जो आप तक प्रेषित है।
तुम पढो
तो मैं लिखूं
तुम कहो
तो मैं रचूं
सच !
तुम्ही से है
मेरा अस्तित्व
तुम्ही से बना
मेरा व्यक्तित्व
तुम हो मेरी प्रेरणा
तुम हो मेरी चेतना
तुम हो मेरी श्वांस
मेरी हर पीडा का हास
तुम हो मेरे भीतर
या बाहर कहीं
जुड़ी हूँ तुमसे
मैं वहीँ
सच !
तुम ही हो
मै नहीं मै नहीं ........

Thursday, January 1, 2009

सुनो नए वर्ष !

नए वर्ष सुनो
तुम्हारा स्वागत है
पर तुम्हारे स्वागत में
मै मस्त हो कोई
जश्न नही मना सकती
क्योंकि जो बीता
वह भूला नही है
घाव अभी भरा नही है
दर्द की अनुभूति
अब तक है
बताओ नए वर्ष
कैसे झूमू
तुम्हारे स्वागत में ,
हो सके तो
दर्द को सहला देना
घाव पर मलहम लगा देना
दे देना
सवालों के जवाब
मुरझाये चेहरों को
संभावनाओं का आकाश
बुझी आंखों में
आशा और विश्वास
सपनों को देना पंख
जो भर सके ऊंची उड़ान
दे दो ऐसा स्वर्णिम विहान
तब गा संकूंगी
तुम्हारे स्वागत का
मधुरिम गान
नए वर्ष तुम
सुन रहे हो न !