Tuesday, April 21, 2009

कुछ बातें और एक कविता

बहुत दिनों बाद आपके समक्ष हूँ । कारण साधारण ही था (लैपटॉप की तकनिकी खराबी) पर इसने मेरी अभिव्यक्ति को बाधित ज़रूर किया । आप सब याद आते रहे क्योंकि मन तो आप सब से जुड़ ही गया है भले तकनिकी तार टूटा रहा हो ....इधर एक कविता इसी उहा पोह में जन्मी जो आप तक प्रेषित है।
तुम पढो
तो मैं लिखूं
तुम कहो
तो मैं रचूं
सच !
तुम्ही से है
मेरा अस्तित्व
तुम्ही से बना
मेरा व्यक्तित्व
तुम हो मेरी प्रेरणा
तुम हो मेरी चेतना
तुम हो मेरी श्वांस
मेरी हर पीडा का हास
तुम हो मेरे भीतर
या बाहर कहीं
जुड़ी हूँ तुमसे
मैं वहीँ
सच !
तुम ही हो
मै नहीं मै नहीं ........

3 comments:

संगीता पुरी said...

बिल्‍कुल सही ... बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति।

संगीता-जीवन सफ़र said...

तुम्ही से है
मेरा अस्तित्व
तुम्ही से बना
मेरा व्यक्तित्व
बहुत सुंदर!

hem pandey said...

'तुम्ही से बना
मेरा व्यक्तित्व
तुम हो मेरी प्रेरणा
तुम हो मेरी चेतना
तुम हो मेरी श्वांस
मेरी हर पीडा का हास'

-बहुत सुन्दर.

अगली अभिव्यक्ति की प्रतीक्षा रहेगी