Wednesday, November 18, 2009

सवालों के हल

छूना चाहती हूँ आकाश
पर धरती से नही
टूटना चाहती
नापना चाहती हूँ ऊंचाई
पर आधार नहीं
खोना चाहती
उड़ना चाहती हूँ
पर बिखरना नही चाहती
होना चाहती हूँ मुक्त
पर बंधन नही तोडना चाहती
होना चाहती हूँ व्यक्त
पर परिधि नहीं लांघना चाहती
.......
देखती हूँ मेरा न चाहना
मेरे चाहने से अधिक प्रबल है
और फिर
मेरा न चाहना भी तो
मेरा चाहना ही है
इसलिए शायद
मेरे सवालों का
मेरे पास ही हल है