न बंधु न मित्र न सखा
फिर तुम हो कौन
बस एक मौन !
तुम क्या हो ?
जीवन का एक पड़ाव
एक भटका हुआ भाव
कुछ अनुत्तरित प्रश्न
कुछ स्नेहिल क्छण
एक अपरिभाषित
अभिव्यक्ति
एक मधुरिम प्रतिती
बन गया सब अतीत
हुआ सब गौण
न बंधु न मित्र न सखा
फिर तुम हो कौन
बस एक मौन!
ऐ अंजाने शुभचिंतक!