Thursday, September 25, 2008

क्या लिखू ........

सोचा था १४ सितम्बर को गणेश विसर्जन है और हिन्दी दिवस भी है ,इन दोनों विषयों पर कुछ लिखूंगी लेकिन ठीक उसके एक दिन पहले दिल्ली में सिरिअल ब्लास्ट हो गए और मेरे विचार जैसे सहम गए ,लेखनी थम सी गई । क्या हो रहा है यह सब ?यह प्रश्न बार -बार कुरेद रहा था और कुरेद रहा है । जयपुर ,अहमदाबाद ,दिल्ली सभी हताहत हैं और अब मुंबई की बारी ...... । ऐसा लगता है की घर से बहार निकल वापस सही सलामत आ पाना ही ज़िन्दगी की जंग जीत लेने जैसा है । मन इन्हीसब उधेड़ बुनो में उलझा था और १४ सितम्बर आ गई ,हिन्दी दिवस का तो कुछ विशेष पता नहीं चला पर गणेश विसर्जन की यहाँ मुंबई में पुरी धूम थी । किसी समाचार चैनल पर किसी संवादाता ने विसर्जन के उत्सव में डूबे लोगो से पूछा कि क्या उन्हें बम विस्फोट का डर नही है ,उनका कहना था कि हम किसी से नही डरते ,गणपति हमारी रक्षा करेंगे । दिल्ली के लोग भी दूसरे दिन निर्भय हो कर रहने कि आवाज़ उठा रहे थे और फिर इन.मोहनचंद शर्मा का शहीद होना ,ये बातें मन को विश्वास से भरती हैं कि आतंकवाद फैलाने वाले कुछ लोग हमारे भारत को खंडित नहीं कर सकते पर हमारी सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को बहुत अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी । ...अभी पिछले दिनों इस्लामाबाद भी दहल उठा । आतकवाद चाहे यहाँ हो या कहीं भी ,अत्यन्त क्रूर कृत्य है जिसमे अनेक मासूम लोग तबाह हो जाते हैं । यह सब करनेवाले आत्ममंथन करे कुछ तो सोचे मानवता के बारे में। इनके लिए मुझे यही कहना है "कितनी आग लगा दो दुनिया शमशान नहीं होगी ,ज़िन्दगी तुम्हारे डर से वीरान नहीं होगी ,इंसा हो इंसा बन कर रहो ,हैवानियत से रूह तुम्हारी भी सुकू का सामा नहीं होगी"

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छा लिखा है।
एक निवेदन-कृपा फान्ट का साईज बड़ा करें। आभार।

shama said...

"Kitnee aag laga lo..." behad pasand aayeen ye panktiyan!Bohot sakaratmak wichar hain!!

shama said...

Jayaji,
Aap bohot achhee rachna kartee hain...ek binatee kar saktee hun aapse??Meree kuchh kavya rachnayen hain, 2007 ke June/July archives me...kya aap badhke tippanee de saktee hain? Kuchh kahaniyanbhee hain.
Haalheeme film makingkaa course kiya...apnee kathape ek film banayi.