Sunday, October 12, 2008

एक कविता

स्नेह ,जो है
एक पवित्र भाव
एक तरंग पर तैरती
दो नाव
कभी कर्तव्य
कभी अधिकार
कभी साहचर्य
कभी प्रतिदान से रहित
कभी अपेक्षा
पर इन सबसे ऊपर
एक शुभ इच्छा ...
तुम जहाँ रहो
खुश रहो
दुःख तुम्हे छुए नहीं
स्नेह का सदा संसर्ग हो
और कभी
तुम्हारे हृदय की
अनगिनत स्मृतियों में
एक मेरा भी नाम हो

4 comments:

Unknown said...

सुन्दर भाव पेश करती आपकी ये कविता ।

DEEPAK NARESH said...

wonderful,
deepak

JETA said...

Didi, I feel really proud to have such a talented, enthusiastic and benevolent sister like you. Keep going. We all'l pray for your success.
Jeta.

Jaya M said...

Hi,
pehli baar ayi hon ..par shayad bahut pehle ana chaiyhe tha..
aap acha likti hain ...
never stop writing..all the best
hugs and smiles