मुंबई की रफ्तार को रोकता हुआ आतंक का राक्षस जांबाज़ सिपाहियों व जवानो के सामने ढेर हो गया । जान पर खेलते हुए इन सिपाहियों ने आतंकवादियों को मार गिराया । मुंबई में रहते हुए मेरे जैसे अनेक लोगो ने घटना का प्रत्यक्षदर्शी न होते हुए भी आतंक की उस हवा को गहरे से अनुभूत किया और अनेक प्रश्नों से भी जूझते रहे कि सबको मालूम था कि आतंकियों का अगला निशाना मुंबई ही होगा पर फिर भी सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं ,राजनितिक नेताओं को स्वार्थ की राजनीति से ही फुर्सत नहीं देश की चिंता कौन करे ?....और हम नागरिक व्याकुल और बेबस
! वास्तव में ये एनएसजी कमांडो ,पुलिस और सेना के जवानो ने अपनी देशभक्ति सही मायनों में निभायी है ,कितनो ने तो अपनी जान तक गवां दी । हृदय शत-शत नमन करता है इन वीर सिपाहियों को । सच कहें तो इनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने में शब्द अक्षम सिद्ध हो रहें हैं ।
कैसे करू तुमको अर्पण
भावों का शब्दांकन
भाव हैं सक्षम
शब्द हैं अक्षम
कैसे करू.......
तुम तो चले गए ,कर
धरा का रक्त से सिंचन
काट मोह के बंधन
निछावर कर दिया तन मन
देश की रक्षा ही जीवन
लक्ष्य तुम्हारा प्रतिक्षण
शीत आतप कर के सहन
जीता भारत माँ का मन
प्राणों की परवाह नहीं
भय न था किंचित कहीं
मृत्यु का कर आलिंगन
निभाया तुमने अपना वचन
दे गए संदेश यही
देश हित है सर्वोपरी
विस्मृत कैसे करेगा मन
शक्ति तुम्हारी तुम्हारे जतन
कैसे करू .........
Friday, November 28, 2008
Sunday, November 16, 2008
हम तुम
Tuesday, November 11, 2008
smriti
स्मृति ! कैसे विस्मृत करू तुझको
तू तो उस फूल की तरह है
जो कभी मुरझाता नहीं
तेरी गंध इतनी सोंधी है
कि जिसे जब भी मैं
अनुभव करती हूँ
धस जाती हूँ
अपनत्व की मिटटी में ,
तेरी ममता उडेल देती है
प्यार का सागर
मेरी रिक्तता में ,
तेरे अनेक चित्र
मेरे मन की आंखों को
रंग देते हैं
तेरे अनेक प्रेमिल प्रतिरूप
मुझे संबल देते हैं
तेरी अठखेलियाँ
मुझे मेरा बचपन देती हैं
तेरी गहराइयाँ
मुझे जीवन का दर्शन देती हैं
स्मृति !कैसे विस्मृत करू तुझको
तू तो उस स्वप्न की तरह है
जो सदैव साकार होता है
उस संगीत की तरह है
जो सदैव गुंजार होता है
उस मीत की तरह है
जो सदैव मन की पुकार होता है
स्मृति !क्यों क्यूकर विस्मृत करू तुझको
तू तो उस फूल की तरह है
जो कभी मुरझाता नहीं
तेरी गंध इतनी सोंधी है
कि जिसे जब भी मैं
अनुभव करती हूँ
धस जाती हूँ
अपनत्व की मिटटी में ,
तेरी ममता उडेल देती है
प्यार का सागर
मेरी रिक्तता में ,
तेरे अनेक चित्र
मेरे मन की आंखों को
रंग देते हैं
तेरे अनेक प्रेमिल प्रतिरूप
मुझे संबल देते हैं
तेरी अठखेलियाँ
मुझे मेरा बचपन देती हैं
तेरी गहराइयाँ
मुझे जीवन का दर्शन देती हैं
स्मृति !कैसे विस्मृत करू तुझको
तू तो उस स्वप्न की तरह है
जो सदैव साकार होता है
उस संगीत की तरह है
जो सदैव गुंजार होता है
उस मीत की तरह है
जो सदैव मन की पुकार होता है
स्मृति !क्यों क्यूकर विस्मृत करू तुझको
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