Saturday, August 30, 2008
मेरी मनपसंद पंक्ति
"जो तुम्हारे निकट है वह परे चला जाए तो तुम्हारा विस्तार सितारों तक तो बढ़ ही गया .... अपने इस उत्कर्ष पर खूब प्रसन्न हो । "
सहजता
सहज होना
जैसे निरभ्र आकाश में
पंछी का उड़ना
श्वेत निर्झर का झरना
उदधि में उठने वाला फेनिल ज्वार
इक माँ का अपने बच्चे से दुलार
इक पत्नी का अपने पति के लिए
फुलके पकाना
रूठने पर पति का
उसे मनाना
भाई बहन की परस्पर लड़ाई
नाती पोतो की दादी नानी से ढिठाई....
सहज होना
जैसे मुस्कुराना
कोई गीत गुनगुनाना
पलकों का भीग जाना
मन को कुछ भा जाना
क़दमों की थिरकन
हलकी सी सिहरन ...
सहज होना
जैसे सब में व्याप्ति
और स्वयं की प्राप्ति
जैसे निरभ्र आकाश में
पंछी का उड़ना
श्वेत निर्झर का झरना
उदधि में उठने वाला फेनिल ज्वार
इक माँ का अपने बच्चे से दुलार
इक पत्नी का अपने पति के लिए
फुलके पकाना
रूठने पर पति का
उसे मनाना
भाई बहन की परस्पर लड़ाई
नाती पोतो की दादी नानी से ढिठाई....
सहज होना
जैसे मुस्कुराना
कोई गीत गुनगुनाना
पलकों का भीग जाना
मन को कुछ भा जाना
क़दमों की थिरकन
हलकी सी सिहरन ...
सहज होना
जैसे सब में व्याप्ति
और स्वयं की प्राप्ति
Friday, August 8, 2008
मेरी बेटी अनूषा के लिए
मेरी भावनाओं की संसृति
मेरी चिर इच्छा की परणिति
मेरी अभिकृति
हंसती हंसाती ,रोती
दिन भर मुझे नचाती
घुटनों से चल कर
दुनिया नाप जाती
अपनी दन्तुरित मुस्कान से
सबका मन लुभाती
अपनी माँ माँ की बोली से
मेरा मन भरमाती
मेरी अनुकृति
तुझसे जुड़ी
मेरे सपनो की लड़ी
सुबह की पहली किरण सी
तपिश में ठंडे झोकों सी
खिलखिलाते फूल सी
मेरे जीवन की आशा
मेरी अनूषा
मेरी चिर इच्छा की परणिति
मेरी अभिकृति
हंसती हंसाती ,रोती
दिन भर मुझे नचाती
घुटनों से चल कर
दुनिया नाप जाती
अपनी दन्तुरित मुस्कान से
सबका मन लुभाती
अपनी माँ माँ की बोली से
मेरा मन भरमाती
मेरी अनुकृति
तुझसे जुड़ी
मेरे सपनो की लड़ी
सुबह की पहली किरण सी
तपिश में ठंडे झोकों सी
खिलखिलाते फूल सी
मेरे जीवन की आशा
मेरी अनूषा
Saturday, August 2, 2008
मेरे बेटे अक्षर के लिए
माँ और बच्चे का सम्बन्ध दुनिया में सबसे सुंदर होता है ,माँ बनकर ही इस बात को मैं गहराई से जान पाई । इस सुंदर अनुभव को आप तक प्रेषित कर रहीं हूँ।
माँ शब्द कितना प्यारा है
जब मैं अपनी माँ को बुलाती हूँ
माँ...........
और जब मेरा बेटा मुझे बुलाता है
माँ............
कानो में एक रस सा घुलता है
भर जाता है हृदय
और छलकता है
मीठा सा प्यार ....
वह सारी चीज़ें इधर -उधर
फेकता रहता है
तह किए घर
बिखेरता रहता है
सुबह से लेकर रात तक
वह मेरे समय को
अपने अनुसार चलाता है
फिर मुझे बहुत गुस्सा आता है
उसे पड़ती है मेरी खीझ भरी
डाट -फटकार
और अधिक शैतानी पर
हलकी सी मार
लेकिन फिर भी वह
रोता हुआ मेरे ही पास आता है
मेरे गाल सहलाता है
और कहता है
माँ ........!
और मुझसे लिपट जाता है
मानो कह रहा हो
चाहे मुझे तुम्हारी कितनी भी
पड़े डाट -फटकार
मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता
मैं तुमसे करता रहूँगा प्यार
हाँ माँ................
सच !माँ शब्द कितना प्यारा है
फूट पड़ता है ममत्व
भीग जाते हैं नेत्र
होता है सत्व का उद्रेक
और समझ आजाती है
प्यार की परिभाषा
माँ शब्द कितना प्यारा है
जब मैं अपनी माँ को बुलाती हूँ
माँ...........
और जब मेरा बेटा मुझे बुलाता है
माँ............
कानो में एक रस सा घुलता है
भर जाता है हृदय
और छलकता है
मीठा सा प्यार ....
वह सारी चीज़ें इधर -उधर
फेकता रहता है
तह किए घर
बिखेरता रहता है
सुबह से लेकर रात तक
वह मेरे समय को
अपने अनुसार चलाता है
फिर मुझे बहुत गुस्सा आता है
उसे पड़ती है मेरी खीझ भरी
डाट -फटकार
और अधिक शैतानी पर
हलकी सी मार
लेकिन फिर भी वह
रोता हुआ मेरे ही पास आता है
मेरे गाल सहलाता है
और कहता है
माँ ........!
और मुझसे लिपट जाता है
मानो कह रहा हो
चाहे मुझे तुम्हारी कितनी भी
पड़े डाट -फटकार
मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता
मैं तुमसे करता रहूँगा प्यार
हाँ माँ................
सच !माँ शब्द कितना प्यारा है
फूट पड़ता है ममत्व
भीग जाते हैं नेत्र
होता है सत्व का उद्रेक
और समझ आजाती है
प्यार की परिभाषा
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