Saturday, August 2, 2008

मेरे बेटे अक्षर के लिए

माँ और बच्चे का सम्बन्ध दुनिया में सबसे सुंदर होता है ,माँ बनकर ही इस बात को मैं गहराई से जान पाई । इस सुंदर अनुभव को आप तक प्रेषित कर रहीं हूँ।

माँ शब्द कितना प्यारा है
जब मैं अपनी माँ को बुलाती हूँ
माँ...........
और जब मेरा बेटा मुझे बुलाता है
माँ............
कानो में एक रस सा घुलता है
भर जाता है हृदय
और छलकता है
मीठा सा प्यार ....
वह सारी चीज़ें इधर -उधर
फेकता रहता है
तह किए घर
बिखेरता रहता है
सुबह से लेकर रात तक
वह मेरे समय को
अपने अनुसार चलाता है
फिर मुझे बहुत गुस्सा आता है
उसे पड़ती है मेरी खीझ भरी
डाट -फटकार
और अधिक शैतानी पर
हलकी सी मार
लेकिन फिर भी वह
रोता हुआ मेरे ही पास आता है
मेरे गाल सहलाता है
और कहता है
माँ ........!
और मुझसे लिपट जाता है
मानो कह रहा हो
चाहे मुझे तुम्हारी कितनी भी
पड़े डाट -फटकार
मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता
मैं तुमसे करता रहूँगा प्यार
हाँ माँ................
सच !माँ शब्द कितना प्यारा है
फूट पड़ता है ममत्व
भीग जाते हैं नेत्र
होता है सत्व का उद्रेक
और समझ आजाती है
प्यार की परिभाषा

1 comment:

abhivyakti said...

It was very very soothing to read. Please keep it up.

anand