Friday, August 8, 2008

मेरी बेटी अनूषा के लिए

मेरी भावनाओं की संसृति
मेरी चिर इच्छा की परणिति
मेरी अभिकृति
हंसती हंसाती ,रोती
दिन भर मुझे नचाती
घुटनों से चल कर
दुनिया नाप जाती
अपनी दन्तुरित मुस्कान से
सबका मन लुभाती
अपनी माँ माँ की बोली से
मेरा मन भरमाती
मेरी अनुकृति
तुझसे जुड़ी
मेरे सपनो की लड़ी
सुबह की पहली किरण सी
तपिश में ठंडे झोकों सी
खिलखिलाते फूल सी
मेरे जीवन की आशा
मेरी अनूषा

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