Saturday, September 6, 2008

avyakt

जो कह दिया
सो बह गया
जो लिख दिया
सो रह गया
पर जो न लिखा
न कहा
अव्यक्त ही रहा
मेरी दृष्टि में वह
अमूल्य है
या एक सुरभित फूल है
जिसकी सुरभि को
देखा नहीं जा सकता
महसूस किया जा सकता है
या है एक अनहद नाद
जो श्रवण से है परे
किंतु उसमे भी है एक आवाज़
या है एक शून्य
जो समेटे है सारा ब्रह्माण्ड
या एक दीप जाज्वल्यमान
जो स्वयं जलकर
जीतता है तम
जिसके व्यक्त प्रकाश में
अव्यक्त अतुलित अक्षत
तप है अनुपम
वह अव्यक्त
मेरी दृष्टि में
सौम्य है सुंदर है
और है सर्वोत्तम

2 comments:

abhivyakti said...

Hum log ( Achal ji, Puntu and anand )tumahare vichar avyakt shirshak par padhkar discuss kar rahe hain ki itne busy schedule ke bad subah 5 baje uth kar likhna aur itna achha likhna .....Ye prena apko kahan se milti hai... Fir socha shayad apko apki maa se.. kyonki unko bhi likhne ka bada shouk hai... Isi tarah likhti rahi aur apne vicharaon ke abhivyakti karti raho..

achal puntu anand

Atmaram Sharma said...

bahut marmik kavita hai.