Saturday, October 4, 2008

आजकल.....

आजकल वातावरण में शक्ति का संचरण हो रहा है यानि दुर्गा के नौ रूपों का आराधन । मैं बचपन में जब भागलपुर में रहा करती थी तब अपनी नानी की अंगुली थामे इन दिनों दुर्गाजी की अनेक विशाल और मनमोहक मूर्तियाँ देखने जाया करती थी । लखनऊ जो मेरा दादीघर है वहां रावण जलाने का उत्सव अपने माँ-पिताजी ,भाई,दोस्तों एवं अन्य भाई-बहनों के साथ देखने जाती थी । दिल्ली में भी रावण जलाने का ही प्रचलन अधिक देखने को मिला पर यहाँ मुंबई शहर में सर्वत्र डाडियाँ की धूम दिखाई पड़ती है और साथ ही दुर्गा की मूर्तियाँ भी देखने को मिलती हैं । शक्ति का यह सुंदर पर्व यह स्मरण कराता है की इस देश में स्त्री कितनी सम्मानीय है पर जब सौम्या विश्वनाथन जैसी अनेक स्त्रियों के साथ जब कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटता है तो भारत की आत्मा रोती है । अभी कई सारे देवी स्थलों पर दुर्घटनाएं हुई ,ऐसा प्रतीत होता है मानो देवियाँ अपना क्रोध प्रकट कर रहीं हों ।
बात जब स्त्रियों की होती है तो अक्सर देखने में आता है की स्त्रियाँ ही स्त्रियों को नहीं समझती हैं ,नौकरी करने वाली महिलाएं घर बैठी महिलाओं की और घर बैठी महिलाएं नौकरीपेशा महिलाओं की आलोचना करतीं हैं । वास्तव में दोनों को ही एक दूसरे के महत्व को समझना चाहिए । गृहस्थ धर्मं में पूरी तरह रमने वाली स्त्री जहाँ महत्वपूर्ण है वहीँ गृहस्थ धर्मं निभाते हुए बाहरी क्षेत्र में अपना अस्तित्व तलाशने वाली स्त्री भी ग़लत नहीं है । ......नवरात्री में दुर्गा के अनेक रूपों के दर्शन होते हैं उसी तरह स्त्री भी अनेक भूमिकाओं को एक साथ निभाने की क्षमता रखती है बस सभी से सहयोग और एक स्नेह भरा हृदयस्पर्शी प्रोत्साहन अपेक्षित होता है । निश्चय ही स्त्री का यदि सही अर्थों में सम्मान हो तो इस नवरात्री में शक्ति का संचरण ही नहीं संवर्धन भी होगा ।

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बात अधुरी लग रही है।शायद आप इसे गलती से पूरा नही कर पाए।ध्यान दें।

Udan Tashtari said...

अभी शायद पोस्ट पूरी नहीं हुई और प्रकाशित हो गई. जरा देखें.

Tarun said...

sahi keh rahi hain aap lekin thora aur vistaar se kehti to shayad aur achha rehta.

योगेन्द्र मौदगिल said...

जितना लिखा उतना अच्छा..
शेष अगली बार सही..
बधाई..