इधर बहुत दिनों से ब्लॉग पर कुछ लिखा नही ,एक तो आतंकवादी घटना के बाद लेखनी कुछ थम सी गई थी और दूसरा मुंबई के मेरे कॉलेज में वार्षिकोत्सव से सम्बंधित विभिन्न कार्यक्रम चल रहे थे ,इन सभी कार्यक्रमों में आतंकवाद प्रमुख विषय बन कर उभर रहा था ,इन्ही में से एक नाटिका की प्रस्तुति छात्रों ने की जिसमे उन्होंने मुंबई की आतंकवादी घटना को बहुत मार्मिक और सजीव रूप में प्रस्तुत किया । यह सब देख कर आँखे बरबस ही आंसुओं से भर गयीं और मात्र भरी ही नहीं बड़ी तीव्रता से छलकने भी लगीं ,सामान्यतया मुझे सबके सामने रोना अच्छा नहीं लगता पर जब स्वयं पर वश ही न हो ,हृदय छिन्न-भिन्न हो तो फिर आंखों का क्या दोष वह तो प्रत्यक्ष देख रहीं थीं । मै अपने चेहरे को छुपाने का प्रयास कर रही थी ,फिर भी कुछ शिक्षको ने देख लिया और कहा आप बड़ी इमोशनल हैं ! मै कुछ बोली नहीं क्योंकि जब हृदय और आँखें अभिव्यक्ति का साधन बन जायें तो शब्द गौड़ प्रतीत होते हैं । वास्तव मे ये आंसू पीड़ा की ही अभिव्यक्ति नही थे बल्कि उसमे राष्ट्राभिमान ,स्वाभिमान का भाव भी घुला हुआ था , इन छात्र छात्राओं पर गर्व भी हुआ कि वह अपनी देश की मिटटी से कितना जुड़े हुये हैं ,यों इस समय समूचा देश एकजुट है आतंकवाद के खिलाफ अब बस देर है तो पकिस्तान को नाको चने चबवाने की
बहुत हो गई शान्ति की बात ,यह शान्ति कहीं शमशान की शान्ति न बन जाए उससे पहले ही पकिस्तान के विरुद्ध युद्ध नाद करना होगा क्योंकि किसी ने कहा है
"जग नही सुनता कभी दुर्बल जानो का शांत प्रवचन
सर झुकता है उसे जो कर सके रिपु मान मर्दन "
Sunday, December 21, 2008
Friday, November 28, 2008
विगलित और कृतज्ञ मन
मुंबई की रफ्तार को रोकता हुआ आतंक का राक्षस जांबाज़ सिपाहियों व जवानो के सामने ढेर हो गया । जान पर खेलते हुए इन सिपाहियों ने आतंकवादियों को मार गिराया । मुंबई में रहते हुए मेरे जैसे अनेक लोगो ने घटना का प्रत्यक्षदर्शी न होते हुए भी आतंक की उस हवा को गहरे से अनुभूत किया और अनेक प्रश्नों से भी जूझते रहे कि सबको मालूम था कि आतंकियों का अगला निशाना मुंबई ही होगा पर फिर भी सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं ,राजनितिक नेताओं को स्वार्थ की राजनीति से ही फुर्सत नहीं देश की चिंता कौन करे ?....और हम नागरिक व्याकुल और बेबस
! वास्तव में ये एनएसजी कमांडो ,पुलिस और सेना के जवानो ने अपनी देशभक्ति सही मायनों में निभायी है ,कितनो ने तो अपनी जान तक गवां दी । हृदय शत-शत नमन करता है इन वीर सिपाहियों को । सच कहें तो इनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने में शब्द अक्षम सिद्ध हो रहें हैं ।
कैसे करू तुमको अर्पण
भावों का शब्दांकन
भाव हैं सक्षम
शब्द हैं अक्षम
कैसे करू.......
तुम तो चले गए ,कर
धरा का रक्त से सिंचन
काट मोह के बंधन
निछावर कर दिया तन मन
देश की रक्षा ही जीवन
लक्ष्य तुम्हारा प्रतिक्षण
शीत आतप कर के सहन
जीता भारत माँ का मन
प्राणों की परवाह नहीं
भय न था किंचित कहीं
मृत्यु का कर आलिंगन
निभाया तुमने अपना वचन
दे गए संदेश यही
देश हित है सर्वोपरी
विस्मृत कैसे करेगा मन
शक्ति तुम्हारी तुम्हारे जतन
कैसे करू .........
! वास्तव में ये एनएसजी कमांडो ,पुलिस और सेना के जवानो ने अपनी देशभक्ति सही मायनों में निभायी है ,कितनो ने तो अपनी जान तक गवां दी । हृदय शत-शत नमन करता है इन वीर सिपाहियों को । सच कहें तो इनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने में शब्द अक्षम सिद्ध हो रहें हैं ।
कैसे करू तुमको अर्पण
भावों का शब्दांकन
भाव हैं सक्षम
शब्द हैं अक्षम
कैसे करू.......
तुम तो चले गए ,कर
धरा का रक्त से सिंचन
काट मोह के बंधन
निछावर कर दिया तन मन
देश की रक्षा ही जीवन
लक्ष्य तुम्हारा प्रतिक्षण
शीत आतप कर के सहन
जीता भारत माँ का मन
प्राणों की परवाह नहीं
भय न था किंचित कहीं
मृत्यु का कर आलिंगन
निभाया तुमने अपना वचन
दे गए संदेश यही
देश हित है सर्वोपरी
विस्मृत कैसे करेगा मन
शक्ति तुम्हारी तुम्हारे जतन
कैसे करू .........
Sunday, November 16, 2008
हम तुम
Tuesday, November 11, 2008
smriti
स्मृति ! कैसे विस्मृत करू तुझको
तू तो उस फूल की तरह है
जो कभी मुरझाता नहीं
तेरी गंध इतनी सोंधी है
कि जिसे जब भी मैं
अनुभव करती हूँ
धस जाती हूँ
अपनत्व की मिटटी में ,
तेरी ममता उडेल देती है
प्यार का सागर
मेरी रिक्तता में ,
तेरे अनेक चित्र
मेरे मन की आंखों को
रंग देते हैं
तेरे अनेक प्रेमिल प्रतिरूप
मुझे संबल देते हैं
तेरी अठखेलियाँ
मुझे मेरा बचपन देती हैं
तेरी गहराइयाँ
मुझे जीवन का दर्शन देती हैं
स्मृति !कैसे विस्मृत करू तुझको
तू तो उस स्वप्न की तरह है
जो सदैव साकार होता है
उस संगीत की तरह है
जो सदैव गुंजार होता है
उस मीत की तरह है
जो सदैव मन की पुकार होता है
स्मृति !क्यों क्यूकर विस्मृत करू तुझको
तू तो उस फूल की तरह है
जो कभी मुरझाता नहीं
तेरी गंध इतनी सोंधी है
कि जिसे जब भी मैं
अनुभव करती हूँ
धस जाती हूँ
अपनत्व की मिटटी में ,
तेरी ममता उडेल देती है
प्यार का सागर
मेरी रिक्तता में ,
तेरे अनेक चित्र
मेरे मन की आंखों को
रंग देते हैं
तेरे अनेक प्रेमिल प्रतिरूप
मुझे संबल देते हैं
तेरी अठखेलियाँ
मुझे मेरा बचपन देती हैं
तेरी गहराइयाँ
मुझे जीवन का दर्शन देती हैं
स्मृति !कैसे विस्मृत करू तुझको
तू तो उस स्वप्न की तरह है
जो सदैव साकार होता है
उस संगीत की तरह है
जो सदैव गुंजार होता है
उस मीत की तरह है
जो सदैव मन की पुकार होता है
स्मृति !क्यों क्यूकर विस्मृत करू तुझको
Wednesday, October 29, 2008
जी बहु रे मोरे भइया ......
"जी बहु रे मोरे भइया जियो भइया लाख बरिसे हो न ,हाथ कमल मुख बिरिया भौजो के सीर सेंदुर सोहे न ........" यह लोकगीत नानी के होठों से थिरकते हुए माँ और मौसी के कंठ में रस घोलते हुए मुझ तक आपहुंचा । बचपन में भागलपुर में रहते हुए मै नानी मौसी और माँ के साथ भइया दूज के दिन ईट पर सुपाड़ी ,गाय का गोबर ,मूसल आदि रख कर पूजा करते हुए अपने भाई को याद करते हुए यह गीत गाती थी । इस गीत की धुन बड़ी मनोहारी लगती थी पर गीत के अर्थ से अनजान सी ही थी ,कई बार तो शब्द भी नहीं समझ आते थे । क्रमश: शब्द के साथ अर्थ भी समझ आने लगा और गीत का वात्सल्य भरा भाव भी ...."मेरे भइया तुम लाख वर्ष तक जियो ,भाभी का सुहाग सदा बना रहे ...."ऐसी सुंदर भावना भाव विभोर कर देती है । सच !भाई बहन के परस्पर प्रेम को यह पर्व प्रगाढ़ बनाता है और यह पर्व भारत भूमि की उपज है ,इस बात से हृदय गर्वानुभूति से भर जाता है । आज भी भइया दूज है और मै अपने एक मात्र प्यारे से छोटे से सहोदर भाई से बहुत दूर यहाँ मुंबई में हूँ । मेरा भाई 'जेता ' अपने नाम की ही तरह सभी के मन को जीतने वाला ,व्यवस्थित ,नियंत्रित ,मुझे निरंतर कुछ करने के लिए प्रेरित करने वाला व सर्व गुन संपन्न है। अब जबकि मै उस गीत का अर्थ पूरी तरह से जान गई हूँ ,उसका एक एक शब्द manan कर चुकी हूँ ,यहाँ दूर से ही अपने प्यारे भाई जेता
जिसे प्यार मै bauwa bulati हूँ ,और उसकी जीवन साथी pyari ,hasmukh paarul को aashish देते हुए यही गीत gunguna रहीं हूँ .....जी बहु रे मोरे भइया ........ ।
(ऊपर कुछ शब्द हिन्दी में परिवर्तित नहीं हो रहे हैं )
जिसे प्यार मै bauwa bulati हूँ ,और उसकी जीवन साथी pyari ,hasmukh paarul को aashish देते हुए यही गीत gunguna रहीं हूँ .....जी बहु रे मोरे भइया ........ ।
(ऊपर कुछ शब्द हिन्दी में परिवर्तित नहीं हो रहे हैं )
Friday, October 24, 2008
एक अनायास कोशिश
"कोशिश करने वालो की हार नहीं होती "इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने भी एक कोशिश की पर यह कोशिश अनायास ही हुयी । हुआ यो कि मुंबई का प्रसिद्द जुहू बीच जिसे मैंने चित्रपट के माध्यम से ही जाना था , मेरी आंखों के सामने अपनी पूरी रंगीनियाँ बिखेरते हुए सुशोभित हो रहा था , पाव भाजी ,पानी पूरी ,भेल पूरी और बर्फ के गोलों के चटकीले रंग और सागर की लहरों की चंचलता मन को चंचल बना रही थी पर जब दृष्टि सिर्फ और सिर्फ सागर की ओर टिकी तो उसका गाम्भीर्य ,उसकी गहराई उस चंचलता पर हावी हो चली और अनायास ही कुछ पंक्तियाँ मन में गूंजी जो कुछ ग़ज़ल की तरह सी थीं , इससे पहले मैंने कभी कोई ग़ज़ल नहीं लिखी थी इसलिए यह एक कोशिश है । यह अनायास कोशिश कैसी है आप बताएं ......इसमे मैं हारी तो नहीं !
"ज़िन्दगी के पन्नों से गुज़रते हुए ,
कुछ पाया तो कुछ खो दिया मैंने
प्यार है तो ज़िन्दगी है '
प्यार को ही ज़िन्दगी बना लिया मैंने
नज़रों को अपनी जो फेरा उसने
यादों में उसको बसा लिया मैंने
ज़िन्दगी सोची थी जैसी वैसी तो नहीं
जैसी भी है उसे अपना बना लिया मैंने
'आनंद' ज़िन्दगी का समंदर है कुछ इस तरह
लहरों की तरह हौसलों को सजा लिया मैंने
"ज़िन्दगी के पन्नों से गुज़रते हुए ,
कुछ पाया तो कुछ खो दिया मैंने
प्यार है तो ज़िन्दगी है '
प्यार को ही ज़िन्दगी बना लिया मैंने
नज़रों को अपनी जो फेरा उसने
यादों में उसको बसा लिया मैंने
ज़िन्दगी सोची थी जैसी वैसी तो नहीं
जैसी भी है उसे अपना बना लिया मैंने
'आनंद' ज़िन्दगी का समंदर है कुछ इस तरह
लहरों की तरह हौसलों को सजा लिया मैंने
Sunday, October 12, 2008
एक कविता
स्नेह ,जो है
एक पवित्र भाव
एक तरंग पर तैरती
दो नाव
कभी कर्तव्य
कभी अधिकार
कभी साहचर्य
कभी प्रतिदान से रहित
कभी अपेक्षा
पर इन सबसे ऊपर
एक शुभ इच्छा ...
तुम जहाँ रहो
खुश रहो
दुःख तुम्हे छुए नहीं
स्नेह का सदा संसर्ग हो
और कभी
तुम्हारे हृदय की
अनगिनत स्मृतियों में
एक मेरा भी नाम हो
एक पवित्र भाव
एक तरंग पर तैरती
दो नाव
कभी कर्तव्य
कभी अधिकार
कभी साहचर्य
कभी प्रतिदान से रहित
कभी अपेक्षा
पर इन सबसे ऊपर
एक शुभ इच्छा ...
तुम जहाँ रहो
खुश रहो
दुःख तुम्हे छुए नहीं
स्नेह का सदा संसर्ग हो
और कभी
तुम्हारे हृदय की
अनगिनत स्मृतियों में
एक मेरा भी नाम हो
Monday, October 6, 2008
एक शिकायत दूर की मैंने
तुमने मेरे लिए कुछ नहीं लिखा !बच्चों के लिए लिखा ,माँ के लिए लिखा ,दोस्तों को भी याद किया ,सामाजिक सरोकार संबधी लेख भी लिखे और मेरे लिए कुछ भी नहीं !....एक कविता भी नहीं ! यह शिकायत मेरे जीवन साथी आनंद की है और हो भी क्यों न आख़िर उन्होंने तो ही मेरे इस ब्लॉग को बनाने में सबसे अधिक सहयोग किया है । .....पर शायद मैंने इसलिए नहीं लिखा क्योंकि जो व्यक्ति हमसे पल प्रतिपल जुडा होता है उसके साथ व्यतीत होता हुआ समय स्वयं कविता स्वरुप होता है ,फिर रस की निष्पत्ति होना कविता की सार्थकता है तो आनंद के साथ मुझे नौ रसों की अनुभूति हो चुकी है ,इसलिए आनंद से जुड़ने के बाद जीवन एक कविता सदृश ही है और जहाँ रस निष्पत्ति होती है वहीँ आनंद है तो आनंद मै आनंदित हूँ ।.......आज ७ अक्टूबर को आनंद का जन्मदिन है । आनंद के दीर्घजीवन एवं स्वस्थ जीवन की इश्वर से प्रार्थना है । ......तो शिकायत दूर हुई !
Saturday, October 4, 2008
आजकल.....
आजकल वातावरण में शक्ति का संचरण हो रहा है यानि दुर्गा के नौ रूपों का आराधन । मैं बचपन में जब भागलपुर में रहा करती थी तब अपनी नानी की अंगुली थामे इन दिनों दुर्गाजी की अनेक विशाल और मनमोहक मूर्तियाँ देखने जाया करती थी । लखनऊ जो मेरा दादीघर है वहां रावण जलाने का उत्सव अपने माँ-पिताजी ,भाई,दोस्तों एवं अन्य भाई-बहनों के साथ देखने जाती थी । दिल्ली में भी रावण जलाने का ही प्रचलन अधिक देखने को मिला पर यहाँ मुंबई शहर में सर्वत्र डाडियाँ की धूम दिखाई पड़ती है और साथ ही दुर्गा की मूर्तियाँ भी देखने को मिलती हैं । शक्ति का यह सुंदर पर्व यह स्मरण कराता है की इस देश में स्त्री कितनी सम्मानीय है पर जब सौम्या विश्वनाथन जैसी अनेक स्त्रियों के साथ जब कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटता है तो भारत की आत्मा रोती है । अभी कई सारे देवी स्थलों पर दुर्घटनाएं हुई ,ऐसा प्रतीत होता है मानो देवियाँ अपना क्रोध प्रकट कर रहीं हों ।
बात जब स्त्रियों की होती है तो अक्सर देखने में आता है की स्त्रियाँ ही स्त्रियों को नहीं समझती हैं ,नौकरी करने वाली महिलाएं घर बैठी महिलाओं की और घर बैठी महिलाएं नौकरीपेशा महिलाओं की आलोचना करतीं हैं । वास्तव में दोनों को ही एक दूसरे के महत्व को समझना चाहिए । गृहस्थ धर्मं में पूरी तरह रमने वाली स्त्री जहाँ महत्वपूर्ण है वहीँ गृहस्थ धर्मं निभाते हुए बाहरी क्षेत्र में अपना अस्तित्व तलाशने वाली स्त्री भी ग़लत नहीं है । ......नवरात्री में दुर्गा के अनेक रूपों के दर्शन होते हैं उसी तरह स्त्री भी अनेक भूमिकाओं को एक साथ निभाने की क्षमता रखती है बस सभी से सहयोग और एक स्नेह भरा हृदयस्पर्शी प्रोत्साहन अपेक्षित होता है । निश्चय ही स्त्री का यदि सही अर्थों में सम्मान हो तो इस नवरात्री में शक्ति का संचरण ही नहीं संवर्धन भी होगा ।
बात जब स्त्रियों की होती है तो अक्सर देखने में आता है की स्त्रियाँ ही स्त्रियों को नहीं समझती हैं ,नौकरी करने वाली महिलाएं घर बैठी महिलाओं की और घर बैठी महिलाएं नौकरीपेशा महिलाओं की आलोचना करतीं हैं । वास्तव में दोनों को ही एक दूसरे के महत्व को समझना चाहिए । गृहस्थ धर्मं में पूरी तरह रमने वाली स्त्री जहाँ महत्वपूर्ण है वहीँ गृहस्थ धर्मं निभाते हुए बाहरी क्षेत्र में अपना अस्तित्व तलाशने वाली स्त्री भी ग़लत नहीं है । ......नवरात्री में दुर्गा के अनेक रूपों के दर्शन होते हैं उसी तरह स्त्री भी अनेक भूमिकाओं को एक साथ निभाने की क्षमता रखती है बस सभी से सहयोग और एक स्नेह भरा हृदयस्पर्शी प्रोत्साहन अपेक्षित होता है । निश्चय ही स्त्री का यदि सही अर्थों में सम्मान हो तो इस नवरात्री में शक्ति का संचरण ही नहीं संवर्धन भी होगा ।
Thursday, September 25, 2008
क्या लिखू ........
सोचा था १४ सितम्बर को गणेश विसर्जन है और हिन्दी दिवस भी है ,इन दोनों विषयों पर कुछ लिखूंगी लेकिन ठीक उसके एक दिन पहले दिल्ली में सिरिअल ब्लास्ट हो गए और मेरे विचार जैसे सहम गए ,लेखनी थम सी गई । क्या हो रहा है यह सब ?यह प्रश्न बार -बार कुरेद रहा था और कुरेद रहा है । जयपुर ,अहमदाबाद ,दिल्ली सभी हताहत हैं और अब मुंबई की बारी ...... । ऐसा लगता है की घर से बहार निकल वापस सही सलामत आ पाना ही ज़िन्दगी की जंग जीत लेने जैसा है । मन इन्हीसब उधेड़ बुनो में उलझा था और १४ सितम्बर आ गई ,हिन्दी दिवस का तो कुछ विशेष पता नहीं चला पर गणेश विसर्जन की यहाँ मुंबई में पुरी धूम थी । किसी समाचार चैनल पर किसी संवादाता ने विसर्जन के उत्सव में डूबे लोगो से पूछा कि क्या उन्हें बम विस्फोट का डर नही है ,उनका कहना था कि हम किसी से नही डरते ,गणपति हमारी रक्षा करेंगे । दिल्ली के लोग भी दूसरे दिन निर्भय हो कर रहने कि आवाज़ उठा रहे थे और फिर इन.मोहनचंद शर्मा का शहीद होना ,ये बातें मन को विश्वास से भरती हैं कि आतंकवाद फैलाने वाले कुछ लोग हमारे भारत को खंडित नहीं कर सकते पर हमारी सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को बहुत अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी । ...अभी पिछले दिनों इस्लामाबाद भी दहल उठा । आतकवाद चाहे यहाँ हो या कहीं भी ,अत्यन्त क्रूर कृत्य है जिसमे अनेक मासूम लोग तबाह हो जाते हैं । यह सब करनेवाले आत्ममंथन करे कुछ तो सोचे मानवता के बारे में। इनके लिए मुझे यही कहना है "कितनी आग लगा दो दुनिया शमशान नहीं होगी ,ज़िन्दगी तुम्हारे डर से वीरान नहीं होगी ,इंसा हो इंसा बन कर रहो ,हैवानियत से रूह तुम्हारी भी सुकू का सामा नहीं होगी"
Saturday, September 6, 2008
avyakt
जो कह दिया
सो बह गया
जो लिख दिया
सो रह गया
पर जो न लिखा
न कहा
अव्यक्त ही रहा
मेरी दृष्टि में वह
अमूल्य है
या एक सुरभित फूल है
जिसकी सुरभि को
देखा नहीं जा सकता
महसूस किया जा सकता है
या है एक अनहद नाद
जो श्रवण से है परे
किंतु उसमे भी है एक आवाज़
या है एक शून्य
जो समेटे है सारा ब्रह्माण्ड
या एक दीप जाज्वल्यमान
जो स्वयं जलकर
जीतता है तम
जिसके व्यक्त प्रकाश में
अव्यक्त अतुलित अक्षत
तप है अनुपम
वह अव्यक्त
मेरी दृष्टि में
सौम्य है सुंदर है
और है सर्वोत्तम
सो बह गया
जो लिख दिया
सो रह गया
पर जो न लिखा
न कहा
अव्यक्त ही रहा
मेरी दृष्टि में वह
अमूल्य है
या एक सुरभित फूल है
जिसकी सुरभि को
देखा नहीं जा सकता
महसूस किया जा सकता है
या है एक अनहद नाद
जो श्रवण से है परे
किंतु उसमे भी है एक आवाज़
या है एक शून्य
जो समेटे है सारा ब्रह्माण्ड
या एक दीप जाज्वल्यमान
जो स्वयं जलकर
जीतता है तम
जिसके व्यक्त प्रकाश में
अव्यक्त अतुलित अक्षत
तप है अनुपम
वह अव्यक्त
मेरी दृष्टि में
सौम्य है सुंदर है
और है सर्वोत्तम
Wednesday, September 3, 2008
गणेश चतुर्थी
आज गणेश चतुर्थी है । मै आजकल मुंबई में निवास कर रहीं हूँ इसलिए इस पावन पर्व को निकट से देख पा रहीं हूँ । घर-घर विराजमान गणपति मन को उमगित किए बिना नहीं रहते । लोकमान्य तिलक ने यह पर्व प्रारम्भ किया था जनजागरण और एकात्मता के लिए । उनकी यह भावना यहाँ के लोगो में दिखाई देती है (राजनैतिक विवाद
चाहे कुछ भी हो ) । इस पावन पर्व पर गणेश जी सबके कष्टों को दूर करे ,सुख शान्ति और सौम्यता प्रदान करें यहीं उनसे प्रार्थना है ।
चाहे कुछ भी हो ) । इस पावन पर्व पर गणेश जी सबके कष्टों को दूर करे ,सुख शान्ति और सौम्यता प्रदान करें यहीं उनसे प्रार्थना है ।
Saturday, August 30, 2008
मेरी मनपसंद पंक्ति
"जो तुम्हारे निकट है वह परे चला जाए तो तुम्हारा विस्तार सितारों तक तो बढ़ ही गया .... अपने इस उत्कर्ष पर खूब प्रसन्न हो । "
सहजता
सहज होना
जैसे निरभ्र आकाश में
पंछी का उड़ना
श्वेत निर्झर का झरना
उदधि में उठने वाला फेनिल ज्वार
इक माँ का अपने बच्चे से दुलार
इक पत्नी का अपने पति के लिए
फुलके पकाना
रूठने पर पति का
उसे मनाना
भाई बहन की परस्पर लड़ाई
नाती पोतो की दादी नानी से ढिठाई....
सहज होना
जैसे मुस्कुराना
कोई गीत गुनगुनाना
पलकों का भीग जाना
मन को कुछ भा जाना
क़दमों की थिरकन
हलकी सी सिहरन ...
सहज होना
जैसे सब में व्याप्ति
और स्वयं की प्राप्ति
जैसे निरभ्र आकाश में
पंछी का उड़ना
श्वेत निर्झर का झरना
उदधि में उठने वाला फेनिल ज्वार
इक माँ का अपने बच्चे से दुलार
इक पत्नी का अपने पति के लिए
फुलके पकाना
रूठने पर पति का
उसे मनाना
भाई बहन की परस्पर लड़ाई
नाती पोतो की दादी नानी से ढिठाई....
सहज होना
जैसे मुस्कुराना
कोई गीत गुनगुनाना
पलकों का भीग जाना
मन को कुछ भा जाना
क़दमों की थिरकन
हलकी सी सिहरन ...
सहज होना
जैसे सब में व्याप्ति
और स्वयं की प्राप्ति
Friday, August 8, 2008
मेरी बेटी अनूषा के लिए
मेरी भावनाओं की संसृति
मेरी चिर इच्छा की परणिति
मेरी अभिकृति
हंसती हंसाती ,रोती
दिन भर मुझे नचाती
घुटनों से चल कर
दुनिया नाप जाती
अपनी दन्तुरित मुस्कान से
सबका मन लुभाती
अपनी माँ माँ की बोली से
मेरा मन भरमाती
मेरी अनुकृति
तुझसे जुड़ी
मेरे सपनो की लड़ी
सुबह की पहली किरण सी
तपिश में ठंडे झोकों सी
खिलखिलाते फूल सी
मेरे जीवन की आशा
मेरी अनूषा
मेरी चिर इच्छा की परणिति
मेरी अभिकृति
हंसती हंसाती ,रोती
दिन भर मुझे नचाती
घुटनों से चल कर
दुनिया नाप जाती
अपनी दन्तुरित मुस्कान से
सबका मन लुभाती
अपनी माँ माँ की बोली से
मेरा मन भरमाती
मेरी अनुकृति
तुझसे जुड़ी
मेरे सपनो की लड़ी
सुबह की पहली किरण सी
तपिश में ठंडे झोकों सी
खिलखिलाते फूल सी
मेरे जीवन की आशा
मेरी अनूषा
Saturday, August 2, 2008
मेरे बेटे अक्षर के लिए
माँ और बच्चे का सम्बन्ध दुनिया में सबसे सुंदर होता है ,माँ बनकर ही इस बात को मैं गहराई से जान पाई । इस सुंदर अनुभव को आप तक प्रेषित कर रहीं हूँ।
माँ शब्द कितना प्यारा है
जब मैं अपनी माँ को बुलाती हूँ
माँ...........
और जब मेरा बेटा मुझे बुलाता है
माँ............
कानो में एक रस सा घुलता है
भर जाता है हृदय
और छलकता है
मीठा सा प्यार ....
वह सारी चीज़ें इधर -उधर
फेकता रहता है
तह किए घर
बिखेरता रहता है
सुबह से लेकर रात तक
वह मेरे समय को
अपने अनुसार चलाता है
फिर मुझे बहुत गुस्सा आता है
उसे पड़ती है मेरी खीझ भरी
डाट -फटकार
और अधिक शैतानी पर
हलकी सी मार
लेकिन फिर भी वह
रोता हुआ मेरे ही पास आता है
मेरे गाल सहलाता है
और कहता है
माँ ........!
और मुझसे लिपट जाता है
मानो कह रहा हो
चाहे मुझे तुम्हारी कितनी भी
पड़े डाट -फटकार
मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता
मैं तुमसे करता रहूँगा प्यार
हाँ माँ................
सच !माँ शब्द कितना प्यारा है
फूट पड़ता है ममत्व
भीग जाते हैं नेत्र
होता है सत्व का उद्रेक
और समझ आजाती है
प्यार की परिभाषा
माँ शब्द कितना प्यारा है
जब मैं अपनी माँ को बुलाती हूँ
माँ...........
और जब मेरा बेटा मुझे बुलाता है
माँ............
कानो में एक रस सा घुलता है
भर जाता है हृदय
और छलकता है
मीठा सा प्यार ....
वह सारी चीज़ें इधर -उधर
फेकता रहता है
तह किए घर
बिखेरता रहता है
सुबह से लेकर रात तक
वह मेरे समय को
अपने अनुसार चलाता है
फिर मुझे बहुत गुस्सा आता है
उसे पड़ती है मेरी खीझ भरी
डाट -फटकार
और अधिक शैतानी पर
हलकी सी मार
लेकिन फिर भी वह
रोता हुआ मेरे ही पास आता है
मेरे गाल सहलाता है
और कहता है
माँ ........!
और मुझसे लिपट जाता है
मानो कह रहा हो
चाहे मुझे तुम्हारी कितनी भी
पड़े डाट -फटकार
मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता
मैं तुमसे करता रहूँगा प्यार
हाँ माँ................
सच !माँ शब्द कितना प्यारा है
फूट पड़ता है ममत्व
भीग जाते हैं नेत्र
होता है सत्व का उद्रेक
और समझ आजाती है
प्यार की परिभाषा
Thursday, July 31, 2008
माँ को समर्पित पंक्तियाँ....
माँ तुम्हारे शब्दों में
विशवास झलकता है
जो मुझे प्रतिपल
संबल देता है
* * * * *
माँ तुम्हारे बोल
तपन में शीतलता की तरह
भटकन में दिशा की तरह
भ्रम में विश्वास की तरह
तम में प्रकाश की तरह
संघर्ष में ढाल की तरह
हर सवाल के जवाब की तरह
* * * * *
माँ तुम्हारे बोल
मेरे जीवन का अवलंब है
जिसमे छिपा मेरे भविष्य का
प्रतिबिम्ब है
मेरी प्यारी माँ :
तुम्हारे बोल तुम्हारी तरह
मीठे निर्मल निश्छल
और ऊर्जान्वित हैं
जिसमे छिपा सभी का
हित है ।
विशवास झलकता है
जो मुझे प्रतिपल
संबल देता है
* * * * *
माँ तुम्हारे बोल
तपन में शीतलता की तरह
भटकन में दिशा की तरह
भ्रम में विश्वास की तरह
तम में प्रकाश की तरह
संघर्ष में ढाल की तरह
हर सवाल के जवाब की तरह
* * * * *
माँ तुम्हारे बोल
मेरे जीवन का अवलंब है
जिसमे छिपा मेरे भविष्य का
प्रतिबिम्ब है
मेरी प्यारी माँ :
तुम्हारे बोल तुम्हारी तरह
मीठे निर्मल निश्छल
और ऊर्जान्वित हैं
जिसमे छिपा सभी का
हित है ।
Tuesday, July 22, 2008
Sunday, July 20, 2008
माँ की लेखनी से ....
"एक माँ शब्द के उच्चारण मात्र से सैकडों गंगा से भरे घट ढुलक जाते हैं और चारो ओर का वातावरण पवित्र हो जाता है । "
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